मोहब्बत

ना जाने मोहब्बत इतनी तनहा क्यूँ है ,

 
ना जाने मोहब्बत इतनी तनहा क्यूँ है ,

अपनी आगोश मैं सूने दिलो की तमाम धड़कने क्यूँ संजोयी है

ये विरान कौन है ?


ना जाने धड़कने इतनी खामोश क्यूँ है

टूटे हुए दिलो की बे-आवाजगी

चीखें बनकर गूंजती क्यूँ है ?


सीने मैं दहकती आग और दर्द की चिंगारियां

ख़ुद को जला ना पायी

ये बर्फ सी ठंडी क्यूँ है ?


दिल मैं एक दर्द का एहसास था या रब

या किसीकी बेवफाई की इन्तेहा थी ,

ना जाने अब वो चुभन इतनी खुशगवार क्यूँ है ,


यहाँ कोई नही कुछ नही सिर्फ़ एक विराना है ,

फिर बे-नूर बेजान आँखें

किसी अपने के निशान तलाशती क्यूँ है,?


ऐ ज़िंदगी तेरे आने से पहले और तेरे चले जाने के बाद '

ये मेरी साँसों की रवानी

मेरी ही रूह की कसक क्यूँ है


ना जाने मोहब्बत इतनी तनहा क्यूँ है ?.

अपनी आगोश मैं सूने दिलो की तमाम धड़कने क्यूँ संजोयी है

ये विरान कौन है ? 
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सरहद...!!!


सरहद...!!!

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"आप आशियाँ बनाने आये थे,
आप आशियाँ गिराने लगे?? ये तो हद है.'

'गुलमोहर पर ही बैठते हैं.. परिन्दे उड़कर ,
घर के बाहर भी जबकि एक पुराना बरगद है.'

'शाम के वक़्त खेलता था.. गली में बचपन,
देखिये आज किताबों में, कितना बेसुध है !!!'

'आँख भर आयी.. ग़रीबों को देख कर सबकी ,
है बड़ा कम मगर जिन्दा ज़मीर शायद है.'

'एक पौधा जो लगाया था.. बढ़ गया ऐसे !!!
यूँ लगा जैसे कि मीनार का ये गुम्बद है.'

'यूँ तो हैं दोस्त कई, इस शहर में ख़ास.. मगर,
सिर्फ़ वो आमदरफ्त ही.. न अभी जायद है.'

'अपने-अपने हिसाब से है.. सबकी मज़बूरी,
कसमें-वादे, रिवाज़-ओ-रस्म, घर की सरहद है.'

'कोई शायर है.. ये कहते हैं सिपाही हँसकर ,
एक टुकड़ा ग़ज़ल का.. जेब से बरामद है...!!!" 


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हुनर परखने का........



हुनर परखने का ...!!!
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"चाँद को चेहरा.. आसमान को आँचल लिख दूँ ,
रात को फिर किसी की, आँख का काज़ल लिख दूँ .'

'अजनबी तुम.. मेरी गजलें पसन्द करते हो,
सोचता हूँ.. तुम्हीं को अपना हाल-ए- दिल लिख दूँ .'

'सबको ढूँढे से भी दुनिया में, जब खुदा ना मिला,
है मेरे दिल में.. रगों में मेरी शामिल लिख दूँ .'

'जबकि खंज़र.. ख़ुद अपने दोस्तों ने मार दिया,
उलझनों में हूँ.. कि किस-किस को मैं क़ातिल लिख दूँ ??'

' सबको हासिल है बराबर.. हुनर परखने का !!!
किसको ज़ाहिल.. किसे मैं इश्क़ के क़ाबिल लिख दूँ ??'

'तेरे दर पे हैं चले आये.. सब उम्मीद लिये,
आज दरगाह को.. प्यासों का मैं बादल लिख दूँ .'

'उड़ते फिरते हैं.. तितलियों की तरह गुलशन में,
याद के पल ये.. ख़ुश्बुओं से हैं घायल लिख दूँ !!!'

'बर्फ़ सी जम गयी है.. और पिघलती ही नहीं,
ज़िन्दगी को किसी.. दरिया का मैं साहिल लिख दूँ .'

'अब तो ये.. बेखुदी है मुझसे कह रही शायद,
कब से लिखा नहीं कुछ .. आज एक गज़ल लिख दूँ ...!!!" 


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एक नज़म

एक नज़म
दिल को भिचों मुठ्ठी मैं
लहू की जो बूदें गिरें
उनसे लिखिए एक नज़म

दिल मैं जो अरमान घुटे
ख्वाब जो कुछ आंखों से मिटे
उन पर लिखिए एक नज़म

उदास न रहिये जी
खुश रहना अच्छा है
जो हो न सका और जो है हुआ
उस पर कितना रोना है ??

आँख मे ये जो मोती हैं
उनको कभी गिराना ना
ये अनमोल खजाने हैं
पलको पे सज़ा लिजे

और एक मुस्कान को भी
होंठों पे जगह दिजे
सारा ग़म कलम में भरके
उसपे लिखिए एक नज़म .....


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बरसात कि भीगी रातों

बरसात कि भीगी रातों में फिर कोई सुहानी याद आई

कुछ अपना जमाना याद आया कुछ उनकी जवानी याद आई

हम भूल चुके थे जिसने हमे दुनिया में अकेला छोड़ दिया

जब गौर किया तो एक सूरत जानी पहचानी याद आई

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रात के तारे अक्सर पुंछते हैं मुझसे .......



रात के तारे अक्सर पुंछते हैं मुझसे
क्या अब भी इंतज़ार है??उसके आने का
मेरा दिल मुस्कुरा के कहता है
मुझे तो अभी यकीन ही नहीं हुआ उसके जाने का ......